ऊब के गीत

सुनने के लिए

हमारे पास समय नहीं था

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उसकी वह कहानी मेरे साथ तेजी से चलते हुए सीढ़ियां चढ़ गई। हम दोनों जाकर मेट्रो ट्रेन के एक कोने में खड़े हुए। कहानी किताब के पन्नों पर बेतरतीब लेटी हुई थी। वह खूबसूरत कहानी ऊंघ रही थी किताब के पन्नों पर। मैं उसे देखने लगा।

कहानी, भूत की कहानी थी।

खूबसूरत कहानी अपने आंचल लहराती और भूत पेड़ पर बैठा देखता रहता उसे। कहानी के खूबसूरत लिबास देख मेरे पास खड़े सभी सहयात्री कहानी देखने लगे। मैं पन्ने खतम करता फिर उनके पन्ने खत्म कर लेने पर तक उनके चेहरे के कौतूहल को देखता। भूत की हर गतिविधि पर उनकी भौहें सिकुड़ जाती। कभी कभी वे डर से सिहर जाते। उनके रोंगटे खड़े हो जाते। वे कांपकर चिहुंक जाते। खूबसूरत नायिका का जिक्र होते ही वे खिलखिला पड़ते। वे आपस में कंधे उचकाते और एक दूसरे को इशारे करते।

उनके पास भी समय नहीं था। मेरे पास भी नहीं था। हमारे पास समय नहीं था। हम एक दूसरे को नहीं जानते थे। हम भूत और नायिका को जानते थे। अगर हम उन्हें नहीं जानते तो हम एक दूसरे को नहीं जानते।

कहानी के इक्कीसवें पृष्ठ पर जब उनमें से एक का स्टेशन आया तो वह चुप हो गया जैसे भूत ही बन गया हो। उसके पास समय नहीं था और वह किसी तरह भूत को नायिका के साथ छोड़कर उतर गया। उसके पास समय नहीं था। मगर वह खूबसूरत नायिका के बालों की सुगंध लिए किसी तरह ट्रेन से उतरा।

वह उतरते ही शाम की धुंध में खो गया।

हम कौतूहल के साथ आगे बढ़ गए। ट्रेन ने हिचकी ली। भूत पेड़ से कुछ अजीबोग़रीब इशारे करता रहा। कहानी के अगले तीन चार पन्नों तक आते आते मेरा स्टेशन आ गया। कहानी मेरे साथ थी।

ट्रेन रुकने से पहले कहानी में ट्रेन आ गई। उस ट्रेन में बैठी नायिका और उसे अगले स्टेशन एक लाश की बनकर उतरना पड़ा। कहानी खत्म होने के ठीक पहले ट्रेन रूक गई।

मेरे पास समय नहीं था। उनके पास भी न ही होगा। मैं उतर गया। वे नहीं उतरे। उनके पास समय जो नहीं था।

मैं उतर गया। वे नायिका की याद में तड़पते रहे। वे मुझे सशंकित दृष्टि से देखते रहे।

मैं कहीं भूत तो नहीं था? कहीं वो मेरी प्रिय प्रेयसी तो नहीं थी?

क्या हुआ अंत में। क्या हम अंत तक पहुंचे?

वे आशंका से चीखें मारने लगे कि तभी ट्रेन झटाक से खुल पड़ी।

मैं उतरते ही खो गया।
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Author: Aditya Shukla

My soul is pessimist.

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