ऊब के गीत

सुनने के लिए

चुप बातें!

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आखिरी बार वो मुझसे झील किनारे मिलने आयी।

तब उसके हाथ में एक नया कैमरा था और चेहरा नसों के तनाव से बोझिल! ऐसा नहीं था कि हम मिल रहे थे सुख या अवसाद में। ये तो उसने यूं फोन कर पूछ लिया था,
‘कहां हो! कब तक रहोगे वहां?’

मैं बैठा रहा चुपचाप झील किनारे। आसमान नारंगी हो चले थे और झील के उस तरफ वाली सीढ़ी पर बैठ कोई कलाकार शाम पेन्ट कर रहा था।
झटके से आकर तभी वो बैठ गयी मेरे बगल में।
अरे तुम! मैंने कहा,
कैसी हो? देखो ना वो लड़का शाम पेन्ट कर रहा है।
फिर देर तक हम शाम पेन्ट होते देखते रहे किसी खूबसूरत सिनेमा की तरह। धीरे धीरे कौवे उतर आये पेन्टिंग की पेड़ पर, झील ने आदिवासियों वाला लोकगीत और तारे बरसे नये प्रेमियों के ऊपर!
हम चुप देखते रहे। चुप की जुबान में बातें करते रहे।

शाम बीती और उकता कर चली गयी। रात ने आलस से अपने पैर फैला दिये झील की सतह पर। तब तक कुछ घने काले बादल भी आसमान में उभर आये।
चुप चुप की बातों का सिलसिला खत्म कर उसने कहा,
‘ मैं नेक्स्ट वीक आस्ट्रेलिया जा रही हूं, चैनल के लिए एक शार्ट मूवी पर काम करने। न जाने कब तक लौटूं। सोचा मिल लूं तुम्हें!’
उसकी ओर पलट चुप चुप में मैंने कुछ कहा भी।
फुहारें पड़ने लगी थीं जब वो छोटे मोटे डिटेल्स बताकर जाने लगी।
चुप के बाद के मेरे लफ्ज यही थे,
पल्लो! फोन जरूर करना वहां से,हां..!”

झील किनारे बैठ मैं रात भर उसके “श्योर” शब्द में भीगता रहा।
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आदित्य!*

Author: Aditya Shukla

My soul is pessimist.

2 thoughts on “चुप बातें!

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