ऊब के गीत

सुनने के लिए

मैंने गाँधी को नहीं मारा.

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मैंने गांधी को नहीं मारा
किसी ने गांधी को नहीं मारा
वह तो खुद-ब-खुद मर गया
एक दिन

हम सबके हाथ में एक-एक पिस्तौलें थीं
छ: छ: गोलियां थीं जिनमें
हम फोटो पर मालाएं चढ़ाते थे
धीरे से एक गोली पेट में दाग देते थे

फिर हम मुस्कुराकर जयकार करते थे

पर हमने गांधी को नहीं मारा
हममें नही था गोली चलाने का हुनर
मगर हममें प्रेम भी न था
माला चढ़ाते हम प्रेमहीन रहते
खुद-ब-खुद दब जाती ट्रिगर बंदूक की
गांधी के पेट में धंस जाती

हमने गांधी को नहीं मारा
वह तो तब भी नहीं मरा था
उन्नीस सौ अड़तालीस में

अब रोज धीरे धीरे मरता है
जब फूल चढ़ाते हैं
एक गोली पेट में धंसा देते हैं उसके

यूं आगे चलकर लोग एक दिन मर ही जाते हैं.

-आदित्य

Author: Aditya Shukla

My soul is pessimist.

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