‘ये लाल इश्क़!!’
गाकर प्रेयस ने अपने प्रेम का इजहार किया। हलांकि उनका प्रेम अत्यंत ही जाहिर था और इजहार महज औपचारिकता थी।
प्रेमिका ने सिगरेट का छल्ला उड़ाकर कहा,
बंद करो ये रोमियोपना। प्रेम में मूर्खतापूर्ण बलिदान के दिन गये अब!
यही वजह थी कि उनकी प्रेम कहानी में ज्यादा दुख नहीं आया।
हलांकि उनकी प्रेम कहानी में शुष्कता जरूर आ गई समय के साथ। मगर प्रेम बरकरार रहा। समय के साथ वे अलग हो गये और एक शुष्क दर्द ने उन दोनों के सिर को अलग अलग जगहों पर अलग अलग समय पर प्रताड़ित किया।
लेखक इस संक्रमित समय में, जबकि तमाम त्रासदियां देश और दुनिया को तबाह किये हुए हैं प्रेम जैसे नाजुक विषय को उठाने के लिए क्षमाप्रार्थी है।
कथा के तीसरे चरण को ऐसे देखा जाए :
दोनों, जो रोमियो-जूलियट तो नहीं हैं, भूगोल के अलग अलग जगहों पर अलग अलग प्रकार के सिर दर्द से पीड़ित हैं। सिर दर्द सिर से उतरकर दांत पर पसर जाता जो सबसे दर्दनाक हिस्सा होता, फिर दांत से उतरकर सीधे धड़कन तक पहुँचता जहां हर्ट अटैक से जरा सी कम तीव्रता की टीस उभरती।
कहानी को पृष्ठभूमि देने के लिए लेखक के पास कुछ नहीं है और सच कहें तो कहानी में कोई कंटेट भी नहीं है। बस यूं हुआ कि रात को बारह बजे आफिस से निकलकर उसने आवारा कुत्ते से बात करने की मूर्खतापूर्ण कोशिश की और कुत्ते ने उसकी उंगली चबा डाली। उंगली से उपजे दर्द से उसे युद्ध में मारे गये तमाम लोगों के दर्द का सा हल्का सा दर्द हुआ और जिससे वह प्रेम से उपजे सिर दर्द और दांत दर्द की कल्पना करने लगा।
लौटकर कहानी पूरी करने की कोशिश एकदम व्यर्थ है क्योंकि लेखक का प्रेक्षण और अनुभव सिर दर्द तक ही सीमित है। यह भी यक्ष और विदित है कि दर्द की पृष्ठभूमि वाली कहानियाँ ज्यादा कारगर साबित होती हैं।
जहां तक मैं आपके लेखक को जानता हूं अगर संभव होता तो वह इस कहानी की हर एक कड़ी को माला की एक सौ सात मोतियों की तरह पिरोता। फिर उसे खोलकर मोतियों को एक सौ सात तरीके से अलग अलग जगहों पर रख नयी माला गूंथता ठीक वैसे ही जैसे सिर में एक सौ सात तरीके के दर्द अलग अलग जगहों पर होते हैं।
______________________________________
आदित्य!