ऊब के गीत

सुनने के लिए

अंधेरे की आंखें चमकती हैं

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रोज-रोज खाने के लिए पैसे चाहिए थे। कम से कम जीवित रहने के लिए खाना जरूरी था। खाने के लिए पैसों का इंतजाम करना पडता था।

जिसके लिए वह रिक्शा चलाता था।

रिक्शा चलाना यूं तो बहुत कठिन काम नहीं था पर जितना श्रम करना पडता था उसके लिहाज से कमाए हुए पैसे कम जान पड़ते थे। कम इसलिए भी जान पड़ते होंगे क्योंकि ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ जाती थी हर महीने। जो पैसे मिलते थे, उसी में खाना, घर भेजना, दारू पीना आदि करना पड़ता था। रहना सबसे कठिन था। फिर भी रहना पड़ता था। दिन रिक्शा चला-चलाकर गुजार दिया करता था वह। रिक्शे पर कभी-कभी खूबसूरत लडकियां बैठती थीं। लड़कियों के लिए रिक्शा चलाने में कुछ तो आनंद होता ही होगा, ऐसा अनुमान किया जा सकता है।

वह और उसके साथी लड़कियों पर फिकरे भी कसते थे गाहे-बगाहे। लड़कियां उनसे नफरत करतीं थीं। कुछ रिक्शे वाले शरीफ होते थे। वह शरीफ नहीं था।

उसकी एक बीवी थी। एक छ: साल की बेटी भी थी। उसे अंधेरी चमकती रात में बीवी की बहुत याद आती थी। उसकी बीवी उसके मानकों में बहुत सुंदर थी। लेकिन वह अपनी सुंदर पत्नी से प्रेम करता था यह निष्कर्ष निकलना कठिन है। वह अपनी बेटी से जरुर प्रेम करता था। वह उसे डॅाक्टर बनाना चाहता था।

मेरी बेटी शोभा पढ़ने में तेज है और वह डॅाक्टर जरुर बनेगी, वह अक्सर सोचा करता और खुश हो जाता।

उसकी बीवी, उसे उसके दोस्त अकरम के फोन पर फोन किया करती। वह बीवी से ज्यादा अपनी बेटी से बातें करता था। बीवी से बात करने लिए ज्यादा कुछ होता भी नहीं था। क्या पता कब क्या मांग बैठे। नई साड़ी, नथनी, भाई की शादी में पहनने के लिए चूड़ियों का सेट। बच्ची के पास अभी ज्यादा मांगे नहीं थी। उसके पास अपना फोन भी नहीं था। यह कहानी उस समय की कहानी रही होगी जब सबके पास फोन नहीं हुआ करते रहे होंगे।

वह अपना खाना खुद बनाता था। रहना कठिन होने को बावजूद वह एक कमरे वाले एक छोटे से घर को किराये पर ले रखा था। उस कमरे में रहना वैसा ही था जैसे कि किसी की मृत्यु हो जाए और हम चुपचाप सिसक सिसक रोएं। उसके एक छोटे से कमरे में एक छोटा सा गंदला स्टोव था। उसके पास एक कूकर, एक कड़ाही और एक तवा था। कुछेकऔर बर्तन होंगे ही उसके पास। कुल मिलाकर उन्हें रखने की जगह नहीं होती थी उस कमरे में। बर्तन इधर उधर पड़े रहते। कमरे में एक-आध चूहे भी रहे ही होंगे उस समय। अंधेरे में उनकी आंखें चमकती थीं। नहीं-नहीं चूहों की आंखें शायद नहीं चमकती। वह कोई बिल्ली रही होगी।

उसकी बेटी कुछ दिनों से बीमार थी। उसे बुखार सा हुआ रहता था। चौराहे के डॅाक्टर को दिखाया था उसकी बीवी ने। डॅाक्टर बुखार की दवाईयां देता था। बुखार उतर जाता। दो तीन दिन मामला ठीक रहता फिर बुखार उपट आता। महीने भर से यह क्रम चल रहा था। बुखार था, बुखार ठीक हो जाते हैं। बच्चों को तो समय समय पल बुखार होना ही चाहिए। वे बिना चप्पल पहने घूमते हैं। धूल-मिट्टी खेलते हैं। बुखार हो जाने पर कम से कम वे चुपचाप बिस्तर पर वेटे लेटे दीवारें तो देखते रहते हैं। दिवारों पर बहुत कुछ लिखा रहता है जिसे सिर्फ बच्चे ही पढ़ सकते हैं। बड़े होने पर वो यह सब भूल जाते हैं।

उस दिन शाम को अकरम के फोन पर फोन आया था। हमेशा की तरह उसने अपनी बीवी से कम बातें की। उस दिन खबर आई थी कि उसका बेटी को अब बुखार न रहा है। अब उसकी सांसे बंद हो गई हैं। अंत समय में उसने पापा पापा कहा था। फोन भी तुरंत नहीं मिल पाया था। उसठी सांसें ठीक छ: बजे बंद हुईं थीं जब वह दारू पी रहा था। जब वह दारू पी रहा था, एक घूंट उसके गले में जाकर अटक गई थी। ठीक उसी समय उसके बेटी की सांसे बंद हुई होंगी।तब उसे दारु पीते हुए अजीब सा लगा था। हिचकी भी आई थी। शायद एक हिचकी के साथ उसकी सांस भी निकल गई होगी।

वह रोया नहीं। शायद दारू का प्रभाव था। अभी घर जा पाना भी संभव नहीं था। कोई ट्रेन, कोई बस नहीं थी इस टाइम। रात घिर आई थी। याद है उसे बचपन में एक बार उसकी गाय मर गई थी। गाय को जलाया नहीं गया। शायद बच्ची को भी न जलाया जाए। वह सुबह की ट्रेन से घर जा सकेगा। अभी अभी उसके पंख से उग आये हैं। वह थोड़ा सा उड़ा था। आसमान सांवला सा है अभी। उस पर एक चांद है। वह अपने कमरे से उड़कर सीधा गांव पहुंच जाएगा। वहां उसकी बेटी बुखार में तप्त कमरे की छत घूर रही होगी। बच्चों को कमरे की छत घूरनी चाहिए। छतों दीवारों पर लिखा हुआ बहुत कुछ सिर्फ बच्चे पढ़ पाते हैं।

नहीं, नहीं किसी ने उसके पंख काट दिये हैं। वह गिर पड़ा है। वह गिर रहा है। छत से नहीं, आसमान से भी नहीं, फर्श से नीचे। फर्श से भी नीचे। फर्श पर बर्तन पड़े हैं। बर्तन में जूठन। जूठन पर कीड़े। काले/नीले//भूरे/गंदे कीड़े।

उसके पंख जहां से कट गए थे, वहां से खून बह रहा है। एक छोटी सी प्यारी बच्ची दीवारों पर लिखा हुआ सा कुछ पढ़कर गुनगुना रही है।

-आदित्य।

Author: Aditya Shukla

My soul is pessimist.

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